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|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=प्रभाती नौटियाल
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<Poem>
सभी महान कवि
हँसते थे मेरी रचनाओं पर
विराम चिह्नों के कारण,
तब मैं पीटता था अपनी छाती
विरामों और अर्द्ध विरामेां के पापों को स्वीकारते हुए,
विस्मयादिबोधक और द्विबिन्दु के पापों को,
अर्थात् सगोत्र-गमन और उन अपराधों को
और जो दफ़ना देते थे मेरे शब्दों को
प्रान्तीय गिरजाघरों के
एक विशिष्ट मध्यकाल में ।

वे सभी जो ‘नेरूदा’ बने थे
शुरू हो गए थे ‘वाय्येख़ो’ बनना
और मुर्गे की बाँग से पहले
‘पर्स’ और ‘एलियट’ के साथ हो लिए थे,
आखिर डूब मरे अपने-अपने तालाबों में ।

तभी, उलझता गया मैं
अपने पूर्वजों के पंचांग में
दिन-प्रतिदिन पुराना पड़ता हुआ
एक भी ऐसा फूल ढूँढ़े बिना
जो किसी ने नहीं ढूँढा;
एक भी ऐसा तारा ढूँढ़े बिना
जो पूरी तरह नहीं बुझा,
तब उसकी चमक में डूबा हुआ मैं,
छाया और फ़ॉस्फ़ोरस में धुत्त
करता रहा एक संज्ञाहीन आकाश का अनुकरण ।

अगली बार मैं जब लौटूँगा
अपने घोड़े के साथ, उस समय
शिकार करने के लिए मैं तैयार रहूँगा
अच्छी तरह दुबकते हुए
फिर जो भी भरे चौकड़ी या उड़ान :
उस पर पहले से निगरानी रखते हुए
चाहे वह मनगढ़ंत है या सचमुच,
चाहे उसकी खोज हो चुकी है या नहीं:
नहीं भाग सकेगा मेरे जाल से
कोई भावी ग्रह भी ।

'''मूल स्पानी भाषा से अनुवाद : प्रभाती नौटियाल'''
</poem>
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