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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
मत रोना पढ़, कौल हमारे तोड़े किस दुश्वारी ने,
लिखवाया ख़त आज तुम्हें ये क़िस्मत की लाचारी ने।

आँसू सूख गये पलकों में, ऐसा बंदर बाट हुआ,
और निकाल मुझे फेंका है हुक्म नये सरकारी ने।

संसद की मंजूरी पाकर एक तमाशा और हुआ,
नाम ननद के दर्ज किया घर खसरे में पटवारी ने।

इतने गर्म थपेड़े लू के घर के आँगन से गुजरे,
घर को फूँक दिया इस घर के चूल्हे की चिनगारी ने।

एक निशानी थी जीने की लेकिन वह भी टिक न सकी,
गिरवी कंगन रखवाये हैं बेटे की बीमारी ने।

खेत बगीचे की बाबत कुछ पूछ नहीं मैं सकती हूँ,
कैसे-कैसे दिन दिखलाये अपनों की अय्यारी ने।

एक भिखारिन के थैले से चिठ्ठी यह ‘विश्वास’ गिरी,
छोड़ा है रोती राधा को हर युग के बनवारी ने।
</poem>
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