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चाहत / ऋचा दीपक कर्पे

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<poem>
लेकर
अपने हाथों में
हाथों को तुम्हारे
चाँद तक जाना
चाहती हूँ मैं..

रखकर
अपना सर
कंधे पर तुम्हारे
सदियाँ नाप जाना
चाहती हूँ मैं...

डालकर
अपनी आँखें
आँखों में तुम्हारी
बस डूब जाना
चाहती हूँ मैं..

घोलकर
अपनी सांसें
सांसों में तुम्हारी
सब भूल जाना
चाहती हूँ मैं...

खोकर
अपना सबकुछ
बस तुम्हारे लिए
तुमको पा जाना
चाहती हूँ मैं...
</poem>