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<poem>
धरम करम दिया छोड़
राम नाम बी पास नहीं
संस्कृति अर संस्कारां पै
रहया आज विस्वास नहीं

बड़े-बुजूर्ग का टोहरा
मान सम्मान रहया कोन्या
कुत्तया तै महंगे बिस्कुट
निर्धन नै दाणा कोन्या
बैल होया बेकार आज
रही गऊआं की ख्यास नहीं
धरम करम दिया

बाहण बेटी सारे गाम की
साझी होया करती
एक बात पै भरे गाम की
राजी होया करती
मरण मारण त्यार फिरै
भाई कै भाई रास नही
धरम करम दिया

साढ़ी सामणी फ़सल पके पै
पुन दान कमाया करते
छत्तीस बिरादरी सारे गाम का
भंडारा लाया करते
साल छमाही दसौंध की
इब रही अड़ास नहीं
धरम करम दिया

गंदा गाणा पाप कमाणा
नीयत होगी खोटी
जंगम जोगी भजनी नै
किते मिलती ना रोटी
बारण आए महमानां नै
पाणी की आस नहीं
धरम करम दिया

खान पान के तौर तरीके
बीती बात पराणी सै
सदाचार सदबिचार कहैं
बीती कोय कहाणी सै
साकाहार खाणिए माणस
दिनेश खाते घास नहीं
धरम करम दिया
</poem>
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