1,826 bytes added,
26 जनवरी {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कोई तोहमत न आए पेश उनकी मेजबानी पर।
भरोसा कर लिया जाये चलो झूठी कहानी पर।
दिखायें हारने की हम ज़रूरत पर अदाकारी।
नजर दुश्मन लगाये जब हो अपनी कामरानी पर।
खिला देतीं मेरी बेचैनियाँ जाने कमल कितने,
बनाऊँ बेखु़दी में जब तेरी तस्वीर पानी पर।
कराती मुल्क से पैदा मुहब्बत कौन-सी ख़ुशबू,
लगी दुनिया की आँखें हैं हमारी इत्रदानी पर।
मुसल्सल तख्त से वादे लुटाना सिर्फ़ जारी है,
मगर अंकुश ज़रूरी, लग नहीं पाये गिरानी पर।
उतर कर चाँदनी दिखला रही जल्वा नया सबको,
उढ़ाकर ओस की चादर महकती रातरानी पर।
मियाँ असबाब दौलत ये जवानी बहता दरिया है,
गुरूर अच्छा नहीं ‘विश्वास’ लाना जिस्मे फानी पर।
</poem>