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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
दुश्मनों में बेकरारी है तो है।
दोस्ती उन से हमारी है तो है।

फर्ज निपटाने में चूकें हम नहीं,
ख्वाहिशों से जंग जारी है तो है।

सब हुईं नाकाम चालें आपकी,
हममें इतनी होशियारी है तो है।

ये चमकती ढ़ाल मेरे हाथ की,
आपके नेजे पर भारी है तो है।

पीठ कब दिखलाई है ‘विश्वास’ ने,
जख्म छाती पर हमारी है तो है।
</poem>
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