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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सबने समझा था ये सूरज तीरगी पी जायगा।
ये पता था किसको ज़ालिम रोशनी पी जायगा।
ये दहाना आग का, ग़ाफ़िल रहे तो शर्तिया,
आदमीयत भाईचारा दोस्ती पी जायगा।
तमकनत प्यासी है इतनी ये ख़बर हमको न थी,
रेत के टीलों की खातिर ये नदी पी जायगा।
देखते रह जायेंगे आँखों से सब हैरत भरी,
चुपके-चुपके ये चमन की ताज़गी पी जायगा।
नींद से जागो सितारों अब भी गर सोये रहे,
ये मुआ काफ़िर अमावस चाँदनी पी जायगा।
चाल उसकी आज ये नाकाम होनी चाहिए,
वर्ना खुदसर मुल्क की पाकी़जगी पी जायगा।
कर न पाये हम रिहा कुछ चंगुलों से गर इसे,
दाँव दे शातिर हमारी हर ख़ुशी पी जायगा।
तेजतर तूफान गर यारों न ये रोका गया,
इक इशारा मुल्क की आसूदगी पी जायगा।
हार का इस जंग में होगा असर ‘विश्वास’ ये,
आने वाली पीढ़ियों की ज़िन्दगी पी जायगा।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
सबने समझा था ये सूरज तीरगी पी जायगा।
ये पता था किसको ज़ालिम रोशनी पी जायगा।
ये दहाना आग का, ग़ाफ़िल रहे तो शर्तिया,
आदमीयत भाईचारा दोस्ती पी जायगा।
तमकनत प्यासी है इतनी ये ख़बर हमको न थी,
रेत के टीलों की खातिर ये नदी पी जायगा।
देखते रह जायेंगे आँखों से सब हैरत भरी,
चुपके-चुपके ये चमन की ताज़गी पी जायगा।
नींद से जागो सितारों अब भी गर सोये रहे,
ये मुआ काफ़िर अमावस चाँदनी पी जायगा।
चाल उसकी आज ये नाकाम होनी चाहिए,
वर्ना खुदसर मुल्क की पाकी़जगी पी जायगा।
कर न पाये हम रिहा कुछ चंगुलों से गर इसे,
दाँव दे शातिर हमारी हर ख़ुशी पी जायगा।
तेजतर तूफान गर यारों न ये रोका गया,
इक इशारा मुल्क की आसूदगी पी जायगा।
हार का इस जंग में होगा असर ‘विश्वास’ ये,
आने वाली पीढ़ियों की ज़िन्दगी पी जायगा।
</poem>