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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
उलझने, रूख से उदासी, बेदख़ल कर देखिये।
दोस्त अपनी ज़िन्दगी थोड़ी सरल कर देखिये।

रंग लायेंगी हमारी कोशिशें उम्मीद है,
गाँव में इक भाईचारे की पहल कर देखिये।

लज़्जते ग़म चाहते हैं आप गर ताजिन्दगी,
कुछ मुहब्बत के उसूलों पर अमल कर देखिये।

चाहते हैं गर बढ़े बालिग नज़र का दायरा,
तंग गलियों से ज़रा बाहर निकल कर देखिये।

खू़बसूरत ज़िन्दगी लगने लगेगी शर्त है,
ढं़ग अपने सोचने का कुछ बदल कर देखिये।

दावा है जड़ से मिटेंगी दोस्त सारी नफ़रत ें,
अपने माथे पर वतन की ख़ाक मलकर देखिये।

आपके चेहरे की रंगत रौशनी बढ़ जायेगी,
दो क़दम ‘विश्वास’ के बस साथ चलकर देखिये।
</poem>
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