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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मिलना करें हुज़ूर गवारा कभी-कभी।
तस्लीम हो सलाम हमारा कभी-कभी।
रहिये सतक्र सिर्फ़ न मझधार से मियाँ,
लेता निगल है कश्ती किनारा कभी-कभी।
उसके भी दिल में दर्द छुपा लग रहा मुझे,
देखा है उसने मुड़के दुबारा कभी-कभी।
खाने को मात इश्क़ में मौका न चूकिये,
आता उरूज पर है सितारा कभी-कभी।
कहना मुआफ कर दें ख़ता एक बार फिर,
रौशन किया करें ये इदारा कभी-कभी।
धोखा मिला नसीब से हम दाँव खा गये,
आया न जब समझ में इशारा कभी-कभी।
‘विश्वास’ हो कबूल ये दिलदार की दुआ,
आये ख़याल उनको हमारा कभी-कभी।
</poem>
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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मिलना करें हुज़ूर गवारा कभी-कभी।
तस्लीम हो सलाम हमारा कभी-कभी।
रहिये सतक्र सिर्फ़ न मझधार से मियाँ,
लेता निगल है कश्ती किनारा कभी-कभी।
उसके भी दिल में दर्द छुपा लग रहा मुझे,
देखा है उसने मुड़के दुबारा कभी-कभी।
खाने को मात इश्क़ में मौका न चूकिये,
आता उरूज पर है सितारा कभी-कभी।
कहना मुआफ कर दें ख़ता एक बार फिर,
रौशन किया करें ये इदारा कभी-कभी।
धोखा मिला नसीब से हम दाँव खा गये,
आया न जब समझ में इशारा कभी-कभी।
‘विश्वास’ हो कबूल ये दिलदार की दुआ,
आये ख़याल उनको हमारा कभी-कभी।
</poem>