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27 जनवरी {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
एहतियातन दौरे हाज़िर में उबलिये और मत।
है ज़रूरत जब्त की हद से निकलिये और मत।
आसमां तक झूठ की है सल्तनत फैली हुयी,
दरमियाँ मौसम में ऐसे सच उगलिये और मत।
इक अहद ये कीजिये अब जु़ल्म सहना है नहीं,
लिखिये ख़ुद अपना मुक़द्दर हाथ मलिये और मत।
रू-ब-रू जब हो हक़ीक़त होश में आ जाइये,
आप अरबाबे हुनर हैं ख़ुद को छलिये और मत।
ढ़ा न दे जा़लिम ज़माना घर मुहब्बत का कहीं,
अजनबी राहाँे पर अपनी ज़िद में चलिये और मत।
जो़र पड़ने पर जियादा टूट सकते हैं कभी,
तख्त के कमजोर पायों पर उछलिये और मत।
कुछ सबक ‘विश्वास’ लगती ठोकरों से सीखिये,
शर्तें याराने की रह रहकर बदलिये और मत।
</poem>