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Kavita Kosh से
और उर्दू से मुझे मिलती है बेहद लज़्ज़त
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हो दिल का मरज़ दूर भला कैसे के अब तो
मँहगाई को मुफ़लिस पे दया तक नहीं आती
मुश्किल से महीने में बचाता है वह जितना
उतने में तो खाँसी की दवा तक नहीं आती
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ज़िन्दगी के दिन कटे आओ जवाँ रातें करें
नानियों, माता-पिता, मौसी व मामाओं के बाद
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रंग, अबीर, गुलाल लगाकर मिलाकर फूलों की बौछार करें
फ़ागुन आया छोड़ के नफ़रत प्यार करें, बस प्यार करें
छोटों को दें, बड़ों से लेकर, आशीर्वाद आज के दिन
उसके आने से 'रक़ीब' आई है जीवन में खुशी
हक़ में दुनिया मेरे गुलज़ार नहीं थी, कि जो है
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कुछ तीस बरस पास समुन्दर के रहा हूँ
आँखों ने बड़ी देर से सहरा नहीं देखा
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