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जब दुबारा कभी मिलूँ उससे
अपनी पहली ग़ज़ल सुनूँ उससे
किस तरह से भला लडूँ उससे
कट के आयी पतंग ये कहती है
है अनाड़ी तो क्यों उडूं उससे
जो नहीं ऐतबार के है हमारे क़ाबिलअब
दूर ही दूर मैं रहूँ उससे
फ़ैसला मैंने कर लिया है 'रक़ीब'
कुछ न पूछूँ न कुछ कहूँ उससे
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