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राहे-वफ़ा में जब भी कोई आदमी चले
हमराह उसके सारे जहाँ की ख़ुशी चले
बुलबुल के लब पे आज हैं नग़में बहार के
सहने चमन में यूँ ही सदा नग़मगीं नग़मगी चले
तय्यार हूँ मैं चलने को हर पल ख़ुदा के घर
इक शब कभी तो साथ मेरे चांदनी चले
मैं जा रहा हूँ तेरा शहर नगर छोड़ कर 'रक़ीब'
आना हो जिसको साथ मेरे वो अभी चले
 
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