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दिल में घर किए अपना ग़म हज़ार बैठे हैं
बेख़ुदी में क्यों उनको हम पुकार बैठे हैं
आज दिल मुक़द्दर से अपना हार बैठे हैं
तज़करा है क्या दिल का की क्या हकीकत है जान अपनी हाज़िर है
मुन्तज़िर इशारे के जाँनिसार बैठे हैं
हाल है बुरा उनका जो हैं आसमानों पर
ग़म नहीं ज़मीं पर कुछ ख़ाक़सार ख़ाकसार बैठे हैं
कल 'रक़ीब' वो क्या थे आज क्या हैं क्या कहिये
भीड़ में फ़कीरों फ़क़ीरों की ताजदार बैठे हैं 
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