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Kavita Kosh से
बुझाओ फिर उसे ऐसे, न हो कोई शरर पैदा
कहो वो बात जो कानो से, सीने में उतर जाए
असर दिल पर जो कर जाए, करो ऐसी नज़र पैदा
शजर ऐसे लगाओ जिनपे हों मीठे समर पैदा
इलाजे रंजो-ग़म वो ही, करेगा अब मुसीबत में
दिया है दर्दे दिल जिसने, किया दर्दे जिगर पैदा
तेरे भटके हुए बन्दों को, जो रस्ता दिखा जायें कुछ ऐसे लोग दुनिया में, ख़ुदाया फिर से कर पैदा
कोई, तन्हाई में उससे कहे, 'मैं मौत हूँ तेरी'
'रक़ीब' उस शख्स शख़्स के दिल में, सरासर होगा डर पैदा
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