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तुम्हारे नेह की नाज़ुक पंखुरियाँझर रही हैंमन की तपती धरती परज़िन्दगी के मौसम में बहार आ गई हैइन दिनोंमेरे ज़ख्मी पाँव पड़ते हैंजहाँ- जहाँचूम लेता है हौले सेमेरे दर्द कोतुम्हारा मखमली अहसास—मेरी आत्मा में घोल दिया है तुमनेअपना जो यह इत्रक्या बताऊँ कि है कितना पवित्र!!माथे पर तुमने जो रखा थावह बोसा गवाह हैकि हर शिकन को मिटातातुम्हारा स्पर्शपूजा का फूल हैहर मुराद फलने लगी हैनई उमंग नजर में पलने लगी हैआँखों में है तुम्हारा अर्कमहक रही हूँ मैंवक्त का झोंकाजब भी आता हैऔर महक जाती हूँ मैंनींद के झोंके में भीअब मुझे यही महसूस होता है—ख़ुशबू का ख़्वाब हो तुमदुनिया के जंगल मेंकाँटों के बीचखिलता गुलाब हो तुम
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