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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
पता है सबको सच्चाई की कुव्वत और होती है।
फसाना और होता है, हकी़कत और होती है।

नसीहत और होती है, मजम्मत और होती है,
तरीका तौर सिखलाने की नीयत और होती है।

कहूँ सच आपकी फ़ितरत समझती ख़ूब हैं महफिल,
सही इस्लाह देने की जसारत और होती है।

हसीं फूलों की क़ीमत कौन समझेगा बयाबां में,
चमन के फूल की कीमत, फजी़लत और होती है।

ये माना सोना चाँदी है जहाँ में कीमती लेकिन,
ढ़ले सांचे में इक ज़ेवर की क़ीमत और होती है।

मुसीबत में मदद करने में कोई शर्त रक्खे तो,
इसे कहते हैं अय्यारी रफाकत और होती है।

मुहब्बत में कहीं भी कै़दोबन्द आयद अगर हो तो,
तिजारत इसको कहते हैं मुहब्बत और होती है।

बहुत-सी पत्थरों में ख़ूबियाँ होंगी मगर फिर भी,
अगर पत्थर तराशें हों तो क़ीमत और होती है।

परिन्दे भी समझते फ़र्क़ हैं ‘विश्वास’ दोनों में,
शरारत और होती है शराफ़त और होती है।
</poem>
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