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<poem>
आँसू समझ नयन में ही, पाला गया मुझे।
हर ग़म ख़ुशी में घर से, निकाला गया मुझे।

मंजिल के वास्ते थीं, राहें कई मगर,
फिर से वफ़ा की राह पर, डाला गया मुझे।

कहने की मन में अपने, ख़्वाहिश हज़ार थी,
लेकिन सवाल कह-कह कर, टाला गया मुझे।

फौलाद से जिगर को भी, शीशा कहा गया,
साँचे में आईने के, ढाला गया मुझे ।

गिर जाऊँ एक बार ही, सोचा यहीं मगर,
गिरने के वास्ते ही,संभाला गया मुझे।

यों दूर तो नहीं था , उनकी निगाह से,
फिर भी नज़र बचा के, खंगाला गया मुझे।
</poem>
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