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<poem>
सुरों की शान है कविता, सुखों की खान है कविता ।
मुलायम मखमली-सी है, कभी चट्टान है कविता ।

हिमालय से कभी ऊँची, समंदर से कभी गहरी,
गगन को चूमने वाली, कभी उत्थान है कविता ।

कभी नदी-सी है, तटों को तोड़ने वाली,
कभी गंभीर सागर है, कभी तूफान है कविता ।

कभी दिनकर सरीखी है, कभी है चाँदनी जैसी,
कभी रूठी प्रिया की मान, या मुस्कान है कविता ।

हृदय की वेदना जब शब्द में ढलकर निकल आये,
नहीं पूछें लहू है या कि फिर अरमान है कविता ।
</poem>
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