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<poem>
शारदे भर गात में दे शक्ति वृष बल के समान ।
खींच पाऊँ ज़िन्दगी को काँध पर हल के समान ।

लौट कर आऊँ कभी करके ज़रा दो चार काम,
प्यार मिल जाये किसी का नाद में जल के समान ।

खा रहे भूसा वही जो मानते कानून आज,
तोड़ने वाले उड़ाते घास मखमल के समान ।

जो नहीं करता उसे सब छोड़ते नाकाम बोल,
और जो करता उसी को कूटते खल के समान ।

जोतता है खेत को तबतक यहाँ जीवंत बैल,
गल न जायें हड्डियाँ जबतक पके फल के समान ।
</poem>
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