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सहयात्री / गायत्रीबाला पंडा / राजेन्द्र प्रसाद मिश्र
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19 फ़रवरी
हर बार कैसे मैं और भी नशाख़ोर बन जाती हूँ
तुम्हारी चाहत के नशे में ।
'''मूल ओड़िया भाषा से अनुवाद : राजेन्द्र प्रसाद मिश्र'''
</poem>
अनिल जनविजय
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