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माँ / शंख घोष

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रेलवे स्टेशन के एक प्लेटफ़ार्म पर
रात दस बजे
लेटी हुई अपनी माँ के चारों ओर
नाचते फिर रहे हैं तीन बच्चे ।

इधर-उधर से आ-जा रही हैं ट्रेनें
यात्रियों का चढ़ना-उतरना
कुलियों की दौड़भाग

जब किसी को
किसी की ओर देखने तक की फुरसत नहीं
तब इनके बीच
लगातार हँसी में लोटपोट
माँ के आसपास घूमते फिर रहे हैं
वे बच्चे
कि अभी उठकर माँ उन्हें खाना देगी ।

माँ के मुँह पर भिनभिना रही हैं मक्खियाँ
और दबे पाँव जाने कब आ खड़े हुए हैं मुर्दाफ़रोश
कि वे उसे उठा ले जाएँगे मर्ग में ।

और तीनों बच्चे हैं कि
आसपास नाचते ही जा रहे हैं
रात के दस बजे ।
</poem>
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