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4 मार्च
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जो रो नहीं सकता है वो गा भी नहीं सकताशहर ये जले तो जले लोग चुप हैंजो खो नहीं सकता है वो पा धुआँ भी हीं सकता उठे तो उठे लोग चुप हैं
आँसू गिरे ज़रा सी नहीं फ़िक्र शायद किसी कोख़ज़ाना लुटे तो लुटे लोग राज़ जान जायेंगेअपनों के दिए ज़ख़्म दिखा भी नहीं सकताचुप हैं
जितना भी झूठ बोलना चाहे वो बोल लेकहाँ होगा फिर भी वो सही बात छुपा भी नहीं सकता पंछियों का बसेराशज़र ये कटे तो कटे लोग चुप हैं
घनघोर कुहासे में जो लिपटा हुआ हो खुदसभी को पड़ी है यहाँ सिर्फ़ अपनीसूरज वो सवेरा नया ला भी नहीं सकता पड़ोसी मरे तो मरे लोग चुप हैं
ईमान से बढ़कर यहाँ लोग भगवान के नहीं है कोई दौलत हैं भरोसेसोया ज़मीर कोई जगा भी नहीं सकताजो सूखा पड़े तो पड़े लोग चुप हैं
मत भूलिए कि चाँद की कितनी है अहमियतअलीगढ़ के ताले लगाकर के बैठेतारों से कोई रात सजा भी नहीं सकता भले पाप फूले फले लोग चुप हैं
पूरा हुआ जो वक़्त तो जाना ही पड़ेगाकोई हकीमन घर में दिये हैं, बैद बचा भी नहीं सकता फूलों की अहमियत को न यूँ दरकिनार करबाहर मशालेंमुरझा गये अँधेरा बढ़े तो उनको खिला भी नहीं सकताबढ़े लोग चुप हैं
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