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मैदान में डटे हो तो दमखम तो दिखा लो
तलवार रख दिए तो क्या क़लम तो उठा लो
वो काम करो दुनिया रखे याद हमेशा
कटता है शीश कटने दो पर शान बचा लो
 
ईमान से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती
पुरखों ने कही है ये बात दिल में बसा लो
 
जल्लाद के यूँ ख़ौफ़ से घुटने न टेक दो
बेशक फ़कीर के समक्ष सर को झुका लो
 
जो ख़ास हो के भी कहीं नीचे पड़े हुए
गर हो सके तो उनको भी काँधे पे बिठा लों
 
बदले की भावना कभी दिल में नहीं रखो
दुश्मन भी सुधर जाय तो गले से लगा लो
 
पैसे दिखा के क्या पता क्या -क्या वो छीन ले
मिलती जो मुफ़्त में वो ग़रीबों की दुआ लो
</poem>
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