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|रचनाकार=अलीम किशोकफ़
|अनुवादक=वरयाम सिंह
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<poem>
मुझे लगता है पुराने गीतों की ख़ातिर
पक्षी भी वापस उड़ जाते हैं अपनी मातृभूमि में ।

मुझे लगता है घास का बाहर निकलना ज़मीन में से
सम्भव नहीं है बिना गीतों के,
विश्वास नहीं तो स्वयं सुनो यह गीत अपने कान से ।

सारा यह संसार, बस, एक गीत है
भले ही, कभी - कभी वह होता है शब्दहीन ।
गीत है हिमानी प्यार का चलना,
बहना नदी का,
ज़मीन के भीतर हल का धँसना ।

रात में चारागाहों पर सोए नन्हें हिरणों को
जगाती नहीं है माँ की महक,
वे जागते हैं माँ के गीत पर
जिसे अपनी अज्ञानता में
मिमियाहट की देते हैं संज्ञा हम ।

सब कुछ संसार में
होता है गीत ख़ुशियों और दुखों का
हमारी सफलता - असफलताओं का,
संसार में आते शिशुओं का रोना भी गीत है ।

मेरी ज़िन्दगी का साथ देते हैं गीत
संसार के हर जीवन्त प्राणी की तरह
मैं भी जीता हूँ, गाता हूँ गीत ।
कभी - कभी फेंकता हूँ शब्द हवा में,
बीते वर्षों में, गाए हुए गीतों में,
कुछ है जो पुन: चाहता है महसूस करना मुझे ।

'''रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
</poem>
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