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|संग्रह=अशोक अंजुम की हास्य व्यंग्य ग़ज़लें / अशोक अंजुम
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<poem>
हर डगर चिल्लपों, हर सफ़र चिल्लपों
अब जिधर देखिए है उधर चिल्लपों

जागरण वे करा के बड़े ख़ुश हुए
कुल मुहल्ले रही रात-भर चिल्लपों

काम पूरा हुआ अब तो घर को चलें
क्या ज़रूरी मिलेगी न घर चिल्लपों

सारी धरती पर अब हर तरफ़ है यही
अब करेंगे चलो चाँद पर चिल्लपों

वो जो मीटिंग हुई शांति के नाम पर
शांति भयभीत थी देखकर चिल्लपों

ये जो बच्चे हैं नेमत ख़ुदा की हैं सब
है घर में मगर हर पहर चिल्लपों

ये जो संसद है मन्दिर है जनतंत्र का
इसके भीतर चले है मगर चिल्लपों
</poem>
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