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|संग्रह=अशोक अंजुम की हास्य व्यंग्य ग़ज़लें / अशोक अंजुम
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<poem>
इस क़दर थीं जनाब में हड्डी
चट् से बोलीं दबाब में हड्डी

छत पर में हूँ औ’ मेरी महबूबा
तुम बनो मत कबाब में हड्डी

डायटिंग इस क़दर भी क्या बेगम
लोग समझें नकाब में हड्डी

हमने भेजा था उसे गुलदस्ता
उसने भेजीं जवाब में हड्डी

ये मिलावट न मार डाले कहीं
रात निकली शराब में हड्डी

कल जो साहब जी मटन खा बैठे
रात-भर आयीं ख़्वाब में हड्डी
</poem>
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