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सब सियासी दाँव उल्टे पड़ गये
लोग हक़ पाने को अपना अड़ गये
बाद में जो होगा देखा जायगा
हम अकेले फ़ौज से भी लड़ गये
 
वक़्त को केवल बदलने की थी देर
खुदबखुद तूफ़ान औ अंधड़ गये
 
पेड़ भी है और शाखाएँ भी हैं
पर, सुहाने फूल, पत्ते झड़ गये
 
हम उन्हें तन्क़ीद देने थे चले
वो हमारे ही गले अब पड़ गये
 
जो बहे बेफ़िक्र हो दरिया बने
ठहर कर पोखर बने जो, सड़ गये
</poem>
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