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{{KKRachna
|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
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<poem>
उनके हौसले बुलंद हैं
वे वामन अवतार की तरह
तीन पग में
धरती नाप लेना चाहते हैं
जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ
वे ही हों
उन्हें विपक्ष की आदत नहीं
एकतंत्र को लोकतंत्र बताकर
जनता को बैसाखियाँ
पकड़ा रहे हैं

सीधा-सा गणित है
मोर्चे तान दो
शक्तिहीन कर दो
प्यासे को भरोसा दो
नदी शीघ्र आएगी पास
हमें नदी को लाने का
रास्ता तो बनाने दो

मगर जनता उन्हें
देख नहीं पा रही है
सच के आईने पर
झूठ की धूल है

उन तक पहुँचने का
रास्ता कंटकाकीर्ण है
नुकीले औजारों के
सख्त पहरे हैं
और जनता की
आवाज पर ताले हैं
जिस की चाबियाँ वे
समुद्र में फेंक चुके हैं
</poem>
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