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{{KKRachna
|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
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|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
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<poem>
नए निजाम को
संगीत की धुनें नहीं पसंद
सैकड़ों गायकों, युवाओं के
सपनों का हुआ क़त्ल
वाद्य यंत्र तोड़ दिए गए
लेकिन आत्मा में बसा
संगीत नहीं टूटा
संगीत की आत्मा दृढ़ है
दृढ़ है युवाओं के इरादे

करेंगे संघर्ष तोड़ेंगे पहरे
दावों की चुनौती स्वीकार कर
करेंगे सामना
तूफान का ,निर्ममता का
अमानवीय उठी
कँटीली झाड़ियों की
परवाह न कर
बढ़ेंगे आगे
संगीत को
उसकी जगह दिलाने

संगीत से गूंजेगा प्रेम
संगीत से गूंजेगी आस्था,
विश्वास
संगीत की स्वर लहरियाँ
देंगी चरम आनन्द की अनुभूति
होगा स्वर्गिक सुख
धरती पर
</poem>
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