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24 मार्च {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अशोक अंजुम
|अनुवादक=
|संग्रह=अशोक अंजुम की ग़जलें / अशोक अंजुम
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<poem>
ये बच्चा क्या ही बच्चा है ख़ुदा का नूर पाया है
जो गुल्लक तोड़कर अपनी दवाई माँ की लाया है
गलत करने चले जब भी तभी अन्दर कोई बोला
सदा जिसने भी ये सुन ली क़दम पीछे हटाया है
मिले हैं ख़ूब व्यौपारी, ईमानों के वह सौदागर
मेरी गुरबत ने मुझको हर क़दम पर आज़मा या है
अँधेरों ने दिए न्यौते हमें अक्सर बुलन्दी से
नफा-नुकसान कब देखा उजालों से निभाया है
मुसाफ़िर वह कभी मंज़िल तलक पहुँचें बहुत मुश्किल
जरा-सी धूप से जिनका इरादा डगमगाया है
उसूलों की तरफदारी में गुज़री है उमर सारी
हवाओं ने तो की कोशिश दिया बुझने न पाया है
कोई गाता है छुप-छुप के कोई खुलकर सुनाता है
मुहब्बत गीत वह है जिसको सबने गुनगुनाया है
परिन्दे उड़ गये आकाश में ऊँचे, बहुत ऊँचे
शिकारी आज फिर जंगल से खाली लौट आया है
सफर में धूप कितनी हो मगर रहती है ठंडक-सी
सफर में साथ मेरे माँ के आशीषों का साया है
</poem>