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24 मार्च {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक अंजुम
|अनुवादक=
|संग्रह=अशोक अंजुम की ग़जलें / अशोक अंजुम
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<poem>
वफाएँ लड़खड़ाती हैं भरोसा टूट जाता है
जरा-सी भूल से रिश्तों का धागा टूट जाता है
सलाखें देखकर घबरा रहा है तू परिन्दे क्यों
अगर शिद्दत से हो कोशिश तो पिंजरा टूट जाता है
परिन्दे वे कभी ऊँची उड़ानें भर नहीं सकते
जरा-सी धूप से जिनका इरादा टूट जाता है
हया आँखों की मर जाए तो घूँघट की ज़रूरत क्या
हया मर जाय तो हर एक परदा टूट जाता है
यकीं रखना तुम्हारी कोशिशें ही काम आएँगी
कि कोशिश रंग लाती हैं कि वादा टूट जाता है
लचक रहती है जिन पेड़ों में लम्बी उम्र जीते हैं
अड़ा रहने पर तूफानों में क्या-क्या टूट जाता है
</poem>