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नीली भौंह पर बल पड़े हैं, गुस्से में हो चूर ।
तो मैं उठाऊँगा लहर अपनी एक सैलाबी,
फिर आ मिलूँगा मैं तेरे उस तूफ़ान से ख़िताबी ।
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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