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आकाश और समुद्र / कंसतन्तीन फ़ोफ़अनफ़ / अनिल जनविजय
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28 मार्च
नीली भौंह पर बल पड़े हैं, गुस्से में हो चूर ।
तो मैं उठाऊँगा लहर अपनी एक सैलाबी,
फिर आ मिलूँगा
मैं
तेरे उस तूफ़ान
से
ख़िताबी ।
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
अनिल जनविजय
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