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{{KKRachna
|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत
|अनुवादक=मनोज पटेल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं बूढ़ा होने का आदी होता जा रहा हूँ
दुनिया का सबसे मुश्किल हुनर –
आखिरी बार खटखटाना दरवाज़ों को,
अन्तहीन बिछोह ।
समय बीतता जा रहा है, बीतता जा रहा है …
मैं विश्वास खो देने की क़ीमत पर समझना चाहता हूँ ।
मैनें तुमसे कुछ कहना चाहा, और कह न सका ।
दुनिया अल-सुब्ह की सिगरेट-सी लगने लगी है :
मौत ने मेरे पास अपना अकेलापन पहले ही भेज दिया है ।
जलन होती है मुझे ऐसे लोगों से
जिन्हें पता ही नहीं कि वे बूढ़े हो रहे हैं,
इतना डूबे हैं वे अपने काम में ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''
</poem>
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|अनुवादक=मनोज पटेल
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मैं बूढ़ा होने का आदी होता जा रहा हूँ
दुनिया का सबसे मुश्किल हुनर –
आखिरी बार खटखटाना दरवाज़ों को,
अन्तहीन बिछोह ।
समय बीतता जा रहा है, बीतता जा रहा है …
मैं विश्वास खो देने की क़ीमत पर समझना चाहता हूँ ।
मैनें तुमसे कुछ कहना चाहा, और कह न सका ।
दुनिया अल-सुब्ह की सिगरेट-सी लगने लगी है :
मौत ने मेरे पास अपना अकेलापन पहले ही भेज दिया है ।
जलन होती है मुझे ऐसे लोगों से
जिन्हें पता ही नहीं कि वे बूढ़े हो रहे हैं,
इतना डूबे हैं वे अपने काम में ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''
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