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|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत
|अनुवादक=मनोज पटेल
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<poem>
क्या मेरा क्रियाकर्म नीचे अपने आँगन से शुरू होगा ?
तुम मेरा ताबूत तीसरी मंज़िल से नीचे कैसे लाओगी ?
लिफ़्ट में यह समाएगा नहीं,
और सीढ़ियाँ बहुत संकरी हैं ।

शायद आँगन में घुटनों तक धूप हो, और कबूतर हों
शायद बर्फ़ हो वहाँ बच्चों की खिलखिलाहट के साथ,
या क्या पता बारिश से धुली हुई डामर हो वहाँ ।
और कूड़ेदान हों हमेशा की तरह ।

अगर, जैसाकि यहाँ रिवाज है, मुझे चेहरा उघाड़कर रखा जाए ट्रक में,
शायद कोई कबूतर कुछ गिरा दे मेरे माथे पर : यह शुभ संकेत होगा ।
बैण्ड बजाने वाले हों या न हों, बच्चे जरूर आएँगे मेरे पास –
उन्हें पसन्द होते हैं अन्तिम संस्कार ।

हमारी रसोई की खिड़की मुझे जाता हुआ देखेगी ।
बालकनी में सूखते कपड़े लहराते हुए मुझे विदा करेंगे ।
यहाँ, मैं तुम्हारी कल्पना से भी ~ज़्यादा ख़ुश रहा ।
दोस्तो, आप सबके लिए मैं लम्बी और ख़ुशहाल ज़िन्दगी की कामना करता हूँ ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''
</poem>
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