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{{KKRachna
|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
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<poem>
जिस्म में तू, जान तू ही है
प्रार्थनाओं में तू, अजान तू ही है
तू है तो हम हैं भारतवासी
मेरी आन बान शान तू ही है

तेरा वर्चस्व जहाँ में इतना
जितने देशों के सफ़र पर मैं रही
हर जगह तू ही नज़र आया है
हर जगह कृष्ण की लीलाएँ हैं
हर जगह राम की जयकारें हैं

उपनिषद ,वेद,महाकाव्य औ पुराणों ने
पूरी दुनिया में धूम मचा रक्खी है
चाहें व्यंजन हो, मसाले हों , परिधान हो
पूरी दुनिया में धाक जमा रक्खी है


बावड़ी हों या महल, स्मारक
उपवन हों या गुफाएँ इसकी
चाहे प्राचीन सभ्यता हो संस्कृति इसकी
सब हैं शामिल विरासत में दुनिया की

सप्त हैं राग ,सप्त हैं सिंधु
छह ऋतुएँ हैं जहाँ मदमाती
तेरी तारीफ में करता है जहाँ भी सजदा
क्यों न मैं शान से हूँ इतराऊँ
मेरा भारत है मैं हूँ भारत की
</poem>
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