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|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
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|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
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<poem>
भारत की पहचान है हिन्दी
भारतवासी की शान है हिंदी

जन-जन की भाषा है हिन्दी
हर मन का संवाद है हिंदी
हर प्रहर समय का जिसने जीता
है कालजयी भाषा हिन्दी

सब भाषाओं को समो लिया
हर बोली को अपनाया है
करके समृद्ध है विश्वकोश
सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली
दुनिया भर की भाषाओं में
है चौथा दर्जा पाया है


हर कण में बसती है हिंदी
हर बोली में बसती हिंदी
है फ़सल काटते खेतों के
गीतों में बसती है हिंदी

जापान, चीन, जर्मनी, रूस
है कहाँ नहीं पहुँची हिन्दी
हिंदी के परचम तले विश्व ने
ज्ञान खजाना है पाया

ज्यों मोर नाचते देखे पैर
है वही हाल हिन्दी का क्यों
क्यों राष्ट्रभाषा नहीं बनी
यह प्रश्न खड़ा है दशकों से
</poem>
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