1,336 bytes added,
30 मार्च {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अचानक तेज बुखार
सर्दी खाँसी में वह
कोरोना संक्रमित पाया गया
वह नौजवान
जिसने कभी अस्पताल का
मुँह नहीं देखा
आज शरीर में
तमाम नलियों से सजा
घबराकर भी
नहीं घबरा रहा है
देख रहा है
हर रोज़ मौत के मंज़र
कोई नहीं होता
मृतक के साथ
वार्ड बॉय जब उसे
स्ट्रेचर पर ले जाते हैं
साथ जाता है
उसका सामान भर
जिसकी अब
जरूरत नहीं है उसे
नौजवान
नलियों से सजा
घबरा कर भी
नहीं घबरा रहा है
वह जान चुका है
जीवन का सत्य
मुट्ठी भर राख
</poem>