981 bytes added,
30 मार्च {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुंदन सिद्धार्थ
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जो पा लिया, वह नहीं
जो पा न सके, वह दुख था
जो कह दिया, वह नहीं
अनकहा जो रह गया, वह दुख था
जो जी लिया, वह नहीं
जो बाक़ी रहा अनजिया, वह दुख था
दुख की जड़ में था प्रेम
जब भी दुख ने घेरा, प्रेम में घेरा
जब भी दुख ने रौंदा, हम प्रेम में थे
प्रेम हमारे लिए था
प्रथम और अंतिम शरणस्थल
न हम प्रेम छोड़ सकते थे
न हम छोड़ सकते थे दुख
</poem>