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<poem>
ऐसा नहीं हुआ कभी वैसा नहीं हुआ
हम क्या ना चाहते थे भला क्या नहीं हुआ

जो शख़्स ज़िन्दगी के लिये ज़िन्दगी-सा था
वो शख़्स ज़िन्दगी में किसी का नहीं हुआ

क्यों आज बा-ए-इश्क नहीं खुल सका कोई
क्यों आज दो किवाड़ों में झगड़ा नहीं हुआ

तो क्या हुआ कि अपने में मसरूफ़ हैं बहुत
तो क्या हुआ कि कोई हमारा नहीं हुआ

माज़ी का ज़िक्र होते ही आता है ये ख़याल
क्या-क्या न आरजू में था क्या-क्या नहीं हुआ

माना कि उसको भूल के ख़ुश लग रहे हैं आप
लेकिन ये ‘पुष्पराज जी’ अच्छा नहीं हुआ
</poem>
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