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30 मार्च {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक अंजुम
|अनुवादक=
|संग्रह=अशोक अंजुम की ग़जलें / अशोक अंजुम
}}
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<poem>
दिन भी कमरे में रात कमरे में
हो रहीं क्या-क्या बात कमरे में
बिछ गई है बिसात कमरे में
होगी अब शय औ मात कमरे में
आयी आँधी, हुई जो बारिश तो
भर गईं सातों जात कमरे में
दूल्हे ने माँग ली जो गाड़ी उफ्
पिट रही कुल बरात कमरे में
तुम हो कमरे में मैं हूँ कमरे में
यूँ कि कुल कायनात कमरे में
सारे जासूस थक गए आखिर
गुम हैं सौ वारदात कमरे में
</poem>