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<poem>
रहूँ ख़ामोश यूँ झगड़े न ख़ुद से बन्द रहते हैं
रहे तकरार जिस घर में दरीचे बन्द रहते हैं

मेरी इन शुष्क आँखों का बताऊँ राज क्या तुमको
अगर दरिया ही सूखा हो तो झरने बन्द रहते हैं

जहाँ किरदार मर जाएँ अधूरा छोड़ अफसाना
जहाँ में उस कहानी के भी पन्ने बन्द रहते हैं

ठहर जाता है हर पल गर रहूँ तेरे खयालों में
तेरी इक याद में कितने ही लमहे बन्द रहते हैं

अगर इक बन्द होता है तो दूजा खोल देता है
खुदा की हो इनायत तो न रस्ते बन्द रहते हैं

जिगर लब रूह आँखें मन कभी तू देख तो आकर
बदन के इक कफस में कितने प्यासे बन्द रहते हैं

हवा इनको न लग जाए कहीं दुनिया की ए यारो
मेरे अहसास इस दिल में चुनाँचे बन्द रहते हैं

अगर हो बात जनता के कभी मुद्दे उठाने की
सदन में देखिए कितने ही गूंगे बन्द रहते हैं
</poem>
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