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31 मार्च {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सत्यवान सत्य
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<poem>
खूब चर्चा कीजिए पहले यहाँ ईमान की
लूटिए फिर ख़ूब दौलत आप हिंदुस्तान की
रहनुमा से इस दफ़ा क्या कुछ नया तुमने सुना
रात भर चर्चा रही इस कान से उस कान की
आपकी तो राजसुख-सी है फ़क़ीरी भी यहाँ
भोगती वनवास घर में भी वहाँ पर जानकी
तैरती इक लाश ने कुछ दूसरी से यूँ कहा
कितनी क़ीमत बढ़ गयी है आजकल शमशान की
कीजिए कितनी ख़ुशामद दीजिए उपदेश पर
सोच बदलेगी नहीं हरगिज़ किसी शैतान की
कर रहा है क़त्ल जो ख़ुद को बनाने में खुदा
कद्र क्या होगी भला उसकी नज़र में जान की
अब हटा अपना मुखौटा मान जा तू ऐ बशर
हो गयी मुश्किल खड़ी है ख़ुद तेरी पहचान की
</poem>