1,406 bytes added,
31 मार्च {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सत्यवान सत्य
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
गमों से ऊबकर जब मयकशी के पास जा बैठा
घड़ी भर को मैं जैसे ज़िन्दगी के पास जा बैठा
लबों की प्यास लेकर इक नदी के पास जा बैठा
पता क्या था मुझे मैं तिश्नगी के पास जा बैठा
भरी महफ़िल में जब उठकर उसी के पास जा बैठा
लगा ऐसे कि जैसे मैं कली के पास जा बैठा
छला है जीस्त में मुझको यहाँ इतना उजालों ने
कि उठकर रोशनी से तीरगी के पास जा बैठा
कभी बैठा नहीं नज़दीक वह फिर भी शिकायत है
मैं उसके पास से उठकर किसी के पास जा बैठा
गया क्या बैठ पल भर एक बूढ़े नीम के नीचे
उसी लमहे में जैसे मैं सदी के पास जा बैठा
</poem>