Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यवान सत्य |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सत्यवान सत्य
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
करेंगे किस तरह से तय कि वे हैं आबशारों से
नजर आते नदी से जो मगर हैं रेगजारों से

करीब उसके उमीदे वस्ल में जाकर मैं ये जाना
कभी मिटती नहीं है तिश्नगी सूखे किनारों से

मेरे अंदर दहकते जो रहे ग़म शम्स की मानिंद
जमाने को दिखाई वे दिए बुझते सितारों से

मेरी आदत नहीं हरगिज़ गुलों पर पांव रखने की
तभी रस्ते मेरे गुजरे हमेशा खारजारों से

मेरे संदल से इस मन में जो ग़म के नाग बैठे हैं
डराते रहते हैं अक्सर मुझे अपनी फुँकारों से

खिजाँ ख़ुद बागबां ने ही मेरी क़िस्मत में जब लिख दी
शिकायत किस तरह करते भला हम फिर बहारों से

बनाकर ख़ुद किले अपनी हजारों हसरतों के क्या
निकलना है बड़ा आसां यहाँ उनके हिसारों से
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,192
edits