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4 अप्रैल {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुमार सौरभ
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<poem>
अवतारी पुरुषों की सत्ता
कलयुग का यह रामराज्य है
आठों याम इन्हीं का कीर्त्तन
दसों दिशा फैला महात्म्य है!
इनके आंगन में पलते जो
आँख मूंद पीछे चलते जो
हाथ जोड़ कर साथ खड़े जो
आत्मसमर्पण किये पड़े जो
पूर्णकाम हो चैन से सोवैं
कौन कबीरा को समझाए
सारी रात जगै अरु रोवै!
हम कुंभन की पाए पनहियां
घोर काल के घनानंद हैं
सत्ता से हम मुँह फेरते
सीकरी सों हमें कहा काम है।
</poem>