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17 अप्रैल {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अभिषेक कुमार सिंह
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|संग्रह=
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ख़ुशी की हो लहर या दुख की धारा, सब तुम्हारा
हमारे पास है जो कुछ हमारा, सब तुम्हारा
अँधेरा छोड़कर सारा का सारा, सब तुम्हारा
हमारे दिल का हर रौशन सितारा, सब तुम्हारा
जिसे चाहो उसे नजरों में अपनी क़ैद कर लो
मेरे हिस्से का हर दिलकश नजारा, सब तुम्हारा
कहाँ अब तैर कर जाऊँ किसी मंज़िल की खातिर
नदी, पतवार, नौका या किनारा, सब तुम्हारा
हमारे पास तो दिल का यही कमरा बचा है
यहाँ का रंग-रोगन, ईट-गारा सब तुम्हारा
हमारे पास तो कुछ भी नहीं जो दे सकें हम
हमारे पास है जो भी हमारा , सब तुम्हारा
</poem>