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{{KKRachna
|रचनाकार=अभिषेक कुमार सिंह
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<poem>
जो कुछ है सब तेरे ही अनुसार है साथी
इस जीवन पर अब तेरा अधिकार है साथी

तेरा होना ईश्वर का उपहार है साथी
तू है तो कितना सुंदर संसार है साथी

भाषा तो बस शब्दों का व्यापार है साथी
मेरी चुप्पी ही मेरा इज़हार है साथी

सदियों तक महफूज़ वहाँ पर होंगे रिश्ते
त्याग जहाँ के रिश्तों का आधार है साथी

अपनी पलकों का भारीपन मुझको दे दे
तेरी नींदों पर सपनों का भार है साथी

आँसू,बादल, बारिश,दरिया, सागर क्या-क्या
जल की बूंदों का कितना विस्तार है साथी

मैं अपने जज़्बात तुझे कैसे दिखलाऊँ
इनका कब होता कोई आकार है साथी

सब लोगों के साथ कहाँ ये मिल पाता है
दिल का यह बच्चा थोड़ा खुद्दार है साथी
</poem>
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