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19 अप्रैल {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय
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|संग्रह=
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<poem>
लम्बा तिलक लगाकर माथे
बैठे पण्डित घासीराम,
बिना दक्षिणा पाए इनका
कभी नहीं चल सकता काम ।
छप्पन झ्ञ्च तोन्द का घेरा,
गुब्बारे से फूले गाल,
हाथी जैसे झूमा करते,
गैण्डे की है इनकी खाल ।
पोथी-पत्रा लेकर अपना
शाम - सवेरे जाते घाट,
चौकी ऊपर जोहा करते
अपने जजमानों की बाट ।
मूरख चेलों को फुसलाकर
लेते धन, पाते आनन्द,
दही - मलाई, चाट -मिठाई
इनको आते बहुत पसन्द ।
</poem>