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|संग्रह=दीवान-ए-मधुमन / मधु 'मधुमन'
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<poem>
तुमको पाने की आरज़ू कर के
रख लिया ख़ुद को ज़र्द-रू कर के

बिजलियो ,क्या मिला तुम्हें आख़िर
मेरे गुलशन को बे-नुमू कर के

तेरी यादों को दिल में रखते हैं
अपने अश्कों से हम वुज़ू कर के

मेरे अपने ही दिल के टुकड़े ने
रख दिया दिल लहू-लहू कर के

दिल पर चलती हैं कितनी तलवारें
बात करते हैं जब वह तू कर के

तुमने तो नाम कर दिया मेरा
मुझको बदनाम कू-ब-कू कर के

हल मिलेगा ज़रूर मुश्किल का
देखिए ख़ुद से गुफ़्तगू कर के

उड़ गया दर्द चोट का झटपट
माँ ने फूँका जो उस पर फू कर के

सब्र के घूँट पी लिए ‘मधुमन ‘
दिल के हर ज़ख़्म को रफ़ू कर के
</poem>
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